प्रस्थान: एक अंतर्मुखी यात्रा की शुरुआत
जनवरी 2023 की ठिठुरती सुबह, जब मैंने अमरकंटक में नर्मदा उद्गम पर पहला कदम रखा, तब मेरे पास था:
- 8 किलो का बैग
- एक डायरी
- और अनगिनत सवाल…
"क्या पूरे 3,300 किमी चल पाऊँगा?" यह सोचकर ही पैर काँप उठे थे।
अध्याय 1: वो पहले 7 दिन जिन्होंने बदल दिया नज़रिया
दिन 3: पहली बड़ी चुनौती
- धारधार जलप्रपात के पास रास्ता भटक गया
- एक स्थानीय आदिवासी परिवार ने रात भर शरण दी
- सीख: "नर्मदा मैया रास्ता दिखा ही देती हैं"
दिन 5: अप्रत्याशित साथी
- 72 वर्षीय बाबा रामदास से मुलाकात
- जो 11वीं बार परिक्रमा कर रहे थे
- उनका सूत्र: "एक दिन में 15 किमी, ज्यादा नहीं"
अध्याय 2: नर्मदा के किनारे-किनारे
अनूठे पड़ाव
- ओंकारेश्वर: जहाँ एक साधु ने मुझे रुद्राक्ष दिया
- हंडिया: जहाँ मैंने 3 दिन एक गुरुकुल में बिताए
- भरूच: जहाँ समुद्र में मिलती है नर्मदा
रोज़मर्रा के चमत्कार
- सुबह 4 बजे घाटों पर होती संध्या वाणी
- गाँव वालों द्वारा भोजन का निमंत्रण
- रात में तारों भरे आकाश के नीचे सोना
अध्याय 3: वो 5 सबक जो जीवन बदल गए
- धैर्य: एक दिन में सिर्फ 500 मीटर चल पाया जब बुखार था
- विश्वास: अजनबियों ने जब बिना कुछ लिए मदद की
- सादगी: 2 जोड़ी कपड़ों में गुज़ारे 42 दिन
- प्रकृति प्रेम: पक्षियों के साथ उठना-सोना
- आत्मनिर्भरता: अपने लिए रोटी बेलना सीखी
विशेष क्षणों की झलक
दिन | घटना | प्रभाव |
---|---|---|
12 | एक विधवा ने अपनी एकमात्र रोटी भेंट की | मानवता पर विश्वास बढ़ा |
23 | बारिश में भीगते हुए एक पेड़ के नीचे रात बिताई | प्रकृति के साथ एकात्मता |
35 | नर्मदा में डूबते सूरज को देखकर आँसू आ गए | अद्भुत शांति |
चुनौतियाँ जिनका सामना किया
- शारीरिक: पैरों में छाले, जोड़ों में दर्द
- मानसिक: घर की याद, थकान
- सुरक्षा: जंगली इलाकों में अकेलापन
समाधान:
- स्थानीय लोगों से रास्ता पूछना
- योग और प्राणायाम करना
- दिनभर का रास्ता सुबह तय करना
यात्रा से लाई हुई 3 निशानियाँ
- एक पत्थर: नर्मदा तट से उठाया हुआ
- रुद्राक्ष माला: बाबा रामदास की दी हुई
- डायरी: जिसमें लिखे हैं 42 दिन के अनुभव
पाठकों के लिए सुझाव
- शुरुआत: छोटी परिक्रमा (15-20 किमी) से करें
- सामान: अधिकतम 10 किलो ही रखें
- मानसिक तैयारी:
- अकेलेपन के लिए तैयार रहें
- प्रतिदिन डायरी लिखें
अंतिम विचार: जब नर्मदा बोली…
यात्रा के अंतिम दिन जब मैंने अमरकंटक में फिर से नर्मदा उद्गम देखा, तो लगा जैसे नर्मदा मैया कह रही हों -
"तुमने मेरे किनारे चलकर नहीं, अपने अंदर झाँककर यात्रा पूरी की है।"