माँ नर्मदा परिक्रमा: एक आध्यात्मिक और पवित्र यात्रा
माँ नर्मदा को भारत की पवित्र नदियों में सबसे विशेष स्थान प्राप्त है। हिन्दू धर्म में गंगा, यमुना और सरस्वती के साथ नर्मदा को भी देवी के रूप में पूजा जाता है। माँ नर्मदा की परिक्रमा को हिन्दू धर्म में अत्यंत पवित्र और मोक्षदायिनी माना जाता है।
नर्मदा परिक्रमा एक कठिन लेकिन आध्यात्मिक यात्रा होती है जिसमें श्रद्धालु नर्मदा नदी के दोनों किनारों से पैदल यात्रा करते हैं। यह यात्रा हजारों सालों से चली आ रही है और आज भी लाखों लोग इस परिक्रमा को पूर्ण करने का संकल्प लेते हैं।
माँ नर्मदा परिक्रमा क्या है?
नर्मदा परिक्रमा एक धार्मिक यात्रा है जिसमें श्रद्धालु नर्मदा नदी के उद्गम स्थल अमरकंटक से शुरू होकर, पूरी नदी की परिक्रमा करते हुए वापस अमरकंटक पहुंचते हैं। इस दौरान परिक्रमावासी नदी के दोनों किनारों से लगभग 3500 से 4000 किलोमीटर की यात्रा तय करते हैं।
इस परिक्रमा में नियमों का पालन करना बहुत आवश्यक होता है। इस दौरान श्रद्धालु नदी को कभी भी पार नहीं करते, बल्कि उसके किनारे-किनारे चलते हैं। यह यात्रा पैदल ही की जाती है और इसे पूरा करने में लगभग 6 महीने से 3 साल तक का समय लग सकता है।
नर्मदा परिक्रमा का महत्व
हिन्दू धर्म में नर्मदा परिक्रमा को अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस परिक्रमा को पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ पूर्ण करता है, उसे जीवन के सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
शास्त्रों में उल्लेख:
- स्कंद पुराण और नर्मदा पुराण में नर्मदा परिक्रमा का विस्तृत वर्णन किया गया है।
- ऐसा कहा जाता है कि स्वयं भगवान शिव ने माँ नर्मदा की परिक्रमा की थी।
- संतों और ऋषियों ने भी इस यात्रा की महिमा को स्वीकारा है।
नर्मदा परिक्रमा के प्रमुख पड़ाव
नर्मदा परिक्रमा के दौरान कई धार्मिक और ऐतिहासिक स्थान आते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख पड़ाव दिए जा रहे हैं:
- अमरकंटक:
- यहीं से नर्मदा नदी का उद्गम होता है।
- यहाँ नर्मदा कुंड और कपिल धारा प्रमुख स्थल हैं।
- मंडला:
- यहाँ राजा हिरण्यकश्यप और भक्त प्रह्लाद से जुड़े कई धार्मिक स्थल हैं।
- जबलपुर:
- यहाँ भेड़ाघाट, धुआंधार जलप्रपात और संगमरमर की चट्टानें आकर्षण का केंद्र हैं।
- ओंकारेश्वर:
- यह भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
- नर्मदा के तट पर स्थित ओंकारेश्वर मंदिर की विशेष मान्यता है।
- महेश्वर:
- देवी अहिल्याबाई होल्कर की नगरी, जहाँ कई सुंदर मंदिर स्थित हैं।
- होशंगाबाद:
- यहाँ सेतुबंध रामेश्वर और सुंदर घाट स्थित हैं।
- भरूच (गुजरात):
- नर्मदा का संगम स्थल, जहाँ से समुद्र में विलीन होती हैं।
नर्मदा परिक्रमा के नियम और विधियाँ
- पैदल यात्रा:
- परिक्रमा पैदल ही की जाती है।
- साइकिल, वाहन या नाव से यात्रा करना निषेध माना जाता है।
- नदी को पार न करना:
- परिक्रमा करते समय नदी को कभी पार नहीं किया जाता।
- हमेशा एक ही किनारे पर यात्रा पूरी की जाती है।
- सात्विक जीवन:
- परिक्रमा के दौरान मांसाहार, नशा और अन्य बुरे कर्मों से बचना चाहिए।
- संध्या वंदन, पाठ और भजन करना चाहिए।
- भिक्षा पर निर्भरता:
- परिक्रमावासी अधिकतर भोजन के लिए भिक्षा पर निर्भर रहते हैं।
- लोग श्रद्धा से परिक्रमा करने वालों को भोजन करवाते हैं।
- धरती पर ही विश्राम:
- अधिकतर यात्री रात्रि विश्राम के लिए किसी धर्मशाला, आश्रम या खुले स्थानों पर रहते हैं।
नर्मदा परिक्रमा करने का सही समय
अधिकतर श्रद्धालु अक्टूबर से मार्च के बीच परिक्रमा शुरू करते हैं, क्योंकि इस समय मौसम ठंडा और सुहावना रहता है। गर्मियों में परिक्रमा कठिन हो जाती है, इसलिए इसे करने से बचा जाता है।
परिक्रमा के लाभ
- आध्यात्मिक शांति और आत्मशुद्धि होती है।
- जीवन के पापों से मुक्ति मिलती है।
- प्रकृति के करीब रहने का अनुभव प्राप्त होता है।
- धैर्य, सहनशीलता और त्याग की भावना विकसित होती है।
निष्कर्ष
माँ नर्मदा परिक्रमा केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक साधना है। यह एक कठिन यात्रा है, लेकिन जो व्यक्ति श्रद्धा और समर्पण के साथ इसे करता है, उसे माँ नर्मदा का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। यदि आप भी जीवन में आध्यात्मिक अनुभूति प्राप्त करना चाहते हैं, तो एक बार नर्मदा परिक्रमा करने का संकल्प जरूर लें।
"नर्मदे हर!"